Thursday, March 12, 2009

ऊंची जात


ऊंची जात

"हरिया.. तेरी यह मजाल, मेरे कुएं मे हाथ डालने की जुर्रत की" कहते हुवे ठाकुर के मुंह से अभिमान भरे शब्द निकलते जा रहे थे।
आहत हरिया का दबास्वर निकला "मालिक मैने तो इस बच्चे को पानी पिलाने...." तमतमाया ठाकुर चिल्लाया "तुम नीची जाती के लोग" फिर लठैतों को आदेश देता है "तबियत हरी कर दो इसकी"
हरिया पर लठैत टूट पड़े। बार बार वो कुछ कहना चाहता है पर वे बेहरम उसे मौका नहीं देते। लाठीयों का वार झेलते झेलते अन्तत: एक डण्डा बच्चे के सर पर पड़ता है, जिसे हरिया लाठियों के वार से बचा रहा था।
बच्चे को मृत देख हरिया चीख पड़ता है "ये तूने क्या किया ठाकुर.. देख ढंग से देख ये मृत पड़ा शिशु तेरी ही औलाद है, जिसे मुंशी दो माह पूर्व लेकर भाग गया था। उच्च जाती के अहं में तू अपनी ही औलाद को नहीं पहचान पाया। तेरे चिराग की रक्षा के लिये मैंने अपना चिराग मुंशी के यहां बली की बेदी पर रख दिया और तूने ये सिला दिया।"
" ठाकुर तू जिस उच्च जाती पर अभिमान करता है उसने तुझे ही लील लिया... सोच किसकी जाती उंची है.. जिसने दूसरे के चिराग की रक्षा के लिये अपना चिराग बुझा लिया हो उसकी, या जिसने अपना भविश्य स्वयं लील लिया हो उसकी ......
"तू जन्म जन्मांतर तक पुत्र प्राप्ती के लिये छटपटायेगा ठाकुर" ... विलाप करता हरिया भी दम तोड़ देता है।
ठाकुर को जब यह समझ में आता है कि हरिया ने अपने पुत्र को मुंशी के पास छोड़ चुपके से उसके दो माह पूर्व अपहृत बालक को बचा के लाया था तो ठाकुर निस्तब्ध एकटक बदहवास सा अपने मृत पुत्र को देखते हुऐ तेज आवाज में कृंदन करता हुआ.... "हरिया तू उच्च कुल का है... हरिया तू उच्च कुल का है..." और हरिया के चरणों में गिर पड़ता है ।
26-08-1998.......राजेश बिस्सा

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