Sunday, March 15, 2009

जीवन सीख

सब

कौवे के एक परिवार का पीपल के पेड़ पर डेरा था। परिवार में कुल पांच सदस्य मुखिया पिता एवं उसके चार पुत्र थे। कौवों की मिल बांटकर खाने की आदतानुसार पिता परिश्रम कर खाद्धान जुटाकर लाता व सब मिल बांट कर खाते। पिता समय के साथ साथ जीवन की दौड़ धूप से थकने सा लगा था, लेकिन अपने परिवार को स्वयं के पालने का अहं उसे जीवन शक्ति देता रहता वहीं पुत्रों को भी पड़े पड़े रोटीयां तोड़ने व अपने कर्तव्यों से विमुख रहने कि आदत सी हो गई थी।

गर्मीयों के दिन आ गये थे, पास का पोखर सूख चुका था। वृक्ष के नीचे रखे एक बड़े से घड़े का पानी भी घटता जा रहा था। परिस्थितियों को देखते हुए परिवार के मुखिया कौवे ने अपने पुत्रों से कहा कि " बेटों मटके का पानी भी नीचे जाता जा रहा है व पोखर भी सूख चुका है। ऐसे में आगे भी पानी मिलता रहे इसलिये हमें मटके में अभी से ही कंकड़ पत्थर डालते रहना चाहिये जिससे उसका पानी ऊपर आता जाये व खाद्धान जुटाने तुम में से किसी को मेरे साथ चलना चाहिये क्योंकि अब ये मेरे अकेले के बस की बात नहीं। जीवन यापन के लिये हमें सम्मिलित प्रयास करने होंगे।

चूंकि पिता का आदेश किसी पुत्र विशेष के लिये नहीं होता अतः चारों पुत्र मुखिया की बात अनसुनी कर अपने मस्त हो जाते हैं।

पुत्रों की लापरवाही को देखते हुऐ पिता चेताता कि " जो लोग अपने पिता कि अवहेलना करते हैं वे सदैव गड्ढे में गिरते हैं " तत्पश्चात वह फिर सबके खाद्धान की व्यवस्था करने व मटके का पानी ऊपर लाने के लिये चुन चुन कर उसमें कंकड़ पत्थर डालने लगता।

भीषण गर्मी का संत्रास झेलते एक दिन मुखिया अपने पुत्रों को सलाह देते हुए मर जाता है कि " बेटों जो अपने कर्तव्यों से विमुख हो अपने जीवन का बोझा दूसरों पर डालकर निश्चिंत हो जाते हैं वो अपनी बर्बादी स्वयं बुलाते हैं।"

मुखिया के मरने के पश्चात अब इन चारों कौवों का पालनहार कोई नहीं बचा था । जीवन यापन करने स्वयं खटना था। चारों कौवे भूख मिटाने खाद्धान जुटाने के लिये उड़ान भरते हैं लेकिन उन्हे कहीं भी अन्न नसीब होता। दिन भर की थकान से हलकान चारों कौवों का प्यास के मारे गला सूखा जा रहा था, जब उन्होने पानी पीने के लिये मटकी में झांका तो देखा की पानी भी काफी नीचे जा चुका था। पानी उपर लाने के सम्मिलित प्रयास करते तो भी काफी समय लगता।

अब यह सब देख बड़ा कौवा बोला " भाईयों अब मुझमें इतना दम नहीं बचा है कि भूखे प्यासे मैं कुछ भी कर सकूं।"

दूसरा कौवा बोला " पिता जी ठीक ही कहते थे कि ये अकर्मण्यता हमें कहीं का नहीं छोड़ेगी।"

तीसरा कौवा बोला " ये सबक जीवन के उत्तरार्थ मे सीख गये होते तो शायद ये दुर्दिन नहीं देखने पड़ते।"

एकाएक आई इस विपत्ति से चारों कौवों के मन उपजी हताशा उनसे पुरुशार्थ करने की शक्ति छीन लेती है अंततः एक के बाद एक क्रमशः वे दम तोडने लगते हैं।

छोटा कौवा भी अंतिम सांसे गिन रहा होता है तभी एक कौवे का परिवार भटकता हुआ वहां पहुंचता है तथा छोटे कौवे को मरणासन्न अवस्था में देखकर पुछता है " भाई ये तुम्हे क्या हो गया है किन कारणों से तुम्हारी ये दशा हो गई है।"

छोटा कौवा भी जवाब देते हुए दम तोड़ देता है कि " जो मां - बाप अपने पुत्रों को समय रहते अपने पैरों पर खड़े होने को मजबूर नहीं करते तो अंततः उनके परिवार का यही हर्ष होता है।"

राजेश बिस्सा.. 01-08-2000

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